
केंद्र सरकार पर यह आरोप समय-समय पर लगते रहे है कि वह कुछ उद्योगपतियों के लिए काम करती है.अब सरकार ने सख्ती दिखाना शुरू कर दी है.पहले तो केंद्र सरकार अनिल अम्बानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी, जहां सुप्रीम फैसला सरकार के हित में रहा.अब मोदी सरकार ने मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसकी सहयोगियों पर गैस चोरी का आरोप लगाया है.सरकार का कंपनी पर आरोप है कि $1.729 बिलियन की गैस बिना किसी अधिकार के निकाल ली है.इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, यूके की बीपी पीएलसी और कनाडा की निको रिसोर्सेज से जवाब मांगा है. सरकार की तरफ से कोर्ट में अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि यह सार्वजनिक नीतियों पर हमला है.उन्होंने यह भी कहा कि रिलायंस ने गलत तरीके से धन अर्जित किया है.यह धोखाधड़ी के साथ ही आपराधिक मामला भी है.इसलिए इसको गंभीर से लेने की ज़रूरत है.
बता दें कि पहले भी देश के तेल मंत्रालय ने 4 नवंबर 2016 को रिलायंस, बीपी और निको की संयुक्त कंपनी के खिलाफ करीब 9,300 करोड़ रुपये का दावा ठोंका था. सरकार का दावा था कि रिलायंस ने लगातार सात सालों से 31 मार्च 2016 तक ओएनजीसी के ब्लॉक से गैस का दोहन किया है.तब यह मात्रा 338.332 मिलियन ब्रिटिश थर्मल गैस यूनिट के बराबर थी.यह ब्लॉक रिलायंस के केजी D-6 तेल ब्लॉक के पास का इलाका था.
इस मामले में हालांकि इंटरनेशनल एट्रिब्यूशन ट्रिब्यूनल ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसके भागीदारों के खिलाफ दूसरों के तैल-गैस कुओं से कथित तौर पर गलत तरीके से गैस निकालने के संदर्भ में भारत सरकार के 1.55 अरब डालर के भुगतान दावे को खारिज कर दिया था. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने नियामकीय सूचना में कहा कि तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने बहुमत के आधार पर रिलायंस और भागीदारों को 83 लाख डालर का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. दो ने फैसले के पक्ष में राय जाहिर की थी जबकि एक इसके खिलाफ थे.
अब देखना यह होगा कि हाई कोर्ट को यह कंपनियां क्या जवाब देती है?और उसके बाद सरकार क्या निर्णय लेती है.क्योंकि अटॉर्नी जनरल के अनुसार यह देश की सम्पत्तियों के साथ धोखाधड़ी का मामला है.
(हसन हैदर)
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